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स्वर्णिम भारत का अंधकारमय भविष्य!!

मेरे शब्द,मेरी शक्ति!!!
मेरे शब्द,मेरी शक्ति!!!
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जिन बच्चों को हम भविष्य के कर्णधार एवं सूत्रधार के रूप मे देखते हैं! जिन बच्चों मे हमे भावी नागरिक का प्रतिबिंब दिखता है क्या आज उन बच्चों का वर्तमान इतना अधिक हीन हो सकता है? जिन बच्चों को हम सोचते हैं कि भविष्य मे देश का संपूर्ण दायित्व उनके कंधों पर होगा, आज वही बच्चे दो वक्त कि रोटी के लिए वर्तमान से संघर्ष कर रहे हैं|
प्रायः हम देख सकते हैं कि जिन बच्चों के हाथों मे कलम व किताब होनी चाहिए, जिनका वर्तमान विद्यालयों मे व्यतीत होना चाहिए, वही बच्चे आज होटलों एवं ढाबों मे जूठे बर्तन साफ करते मिल जाते हैं| और जिन बच्चों को कालेजों मे होना चाहिए, वे बच्चे मज़दूरी करते दिखते हैं|
एक और इससे भी अधिक बुरा कार्य है जिसमे अधिकतर गरीब परिवार के बच्चों का बचपन व्यतीत हो रहा है, और वह है भीख माँगने का| सड़क पर बच्चे हाथ मे थाली या कटोरा लिए भीख मांगते आसानी से देखे जा सकते हैं| और वे ऐसा करें क्यूँ न? आज उन्हे खाने के लिए दो वक्त कि रोटी नही नसीब होती है और जो खाने के दाने दाने का मोहताज़ है, वह भीख न मांगे, होटलों मे बर्तन न साफ करे, ,मज़दूरी न करे, तो और क्या करे? ऐसे हालात मे उन्हे शिक्षा प्राप्ति के लिए सोचना भी गुनाह है|
इनके खेलने कूदने एवं शिक्षा प्राप्ति के दिन भिक्षा माँगने एवं मज़दूरी माँगने मे व्यतीत हो रहे हैं| ऐसे मे उनके माता पिता ही क्या कर सकते हैं जो खुद गरीबी मे ज़िल्लत की ज़िंदगी जी रहे हैं| इन लोगों के लिए शिक्षा की कोई अहमियत नहीं है एवं निरर्थक है क्योकि क्योकि जीवन जीने के लिए पहले तो अपने पेट की अग्नि को शांत करना होता है, जब यह अग्नि शांत होगी तभी दिमाग आगे करने के लिए सोचेगा| लेकिन ऐसा हो तब ना|
सरकार भले ही शिक्षा प्रसार के लिए कितने ही कदम उठ ले, कितने ही गरीबी हटाओ अभियान चला ले, सब बेकार है| सरकार की योजनाएँ जैसे सर्व शिक्षा अभियान,निः शुल्क शिक्षा आदि सब कागजी ही प्रतीत हो रहे हैं| भले ही सरकार शिक्षा के क्षेत्र मे पैसे लूटा रही है पर वास्तविकता कुछ और ही है|
क्या यही है हमारा स्वर्णिम एवं विकाशशील भारत? क्या यही बच्चे है हमारे देश के भावी सूत्रधार ?

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