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प्रेम की सार्थकता -“valentine contest”

मेरे शब्द,मेरी शक्ति!!!
मेरे शब्द,मेरी शक्ति!!!
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प्रेम क्या है? प्रेम किसे कहते हैं? इसकी शुरुआत कहाँ से होती है ? इस विषय मे सबके अपने अपने विचार हैं | हमे प्रेम की कई प्रकार की परिभाषाएँ सुनने को मिलती हैं, लेकिन सभी परिभाषाओं का सार एक ही होता है|

मेरे अनुसार –“प्रेम दो दिलों का मेल है जिसमें दोनों ओर से एक दूसरे के प्रति ईमानदारी , कर्तव्यनिष्ठा , त्याग, सहानुभूति तथा दुखो मे भागीदारी की निःस्वार्थ भावना हो| परंतु मै (अहं) एवं छलकपट की भावना कदापि न हो| यही सच्चा प्यार है |”

आज प्रेम शब्द का प्रयोग अत्यंत संक्षिप्त हो गया है | इसे हम प्रायः प्रेमी व प्रेमिका के मध्य उत्पन्न प्रेम से ही लगाते है | जबकि इसके भी अनेक रूप है| माता-पुत्र,पिता-पुत्र, व भाई-बहन आदि का प्रेम भी इसकी श्रेणी मे आता है| चूंकि “valentine contest” चल रहा है, इसलिए मै प्रेमी व प्रेमिका के प्रेम का ही वर्णन करूंगा|

प्रेम की उत्पत्ति वैसे तो दोस्ती का ही परिणाम है| यदा कदा जीवन के किसी मोड पर किसी अजनबी से हमारी टक्कर हो जाती है| यदि उसकी भावनाएं हमें भा जाती है तथा उसके और अपने विचार आपस मे मेल खाते है तो संभवतः उसकी ओर हम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं| अगर यह दोस्ती हम उम्र के समलैंगिक व्यक्ति से हो तो यह दोस्ती, दोस्ती  ही बनी रहती है| और यह हम उम्र के विषमलैंगिक व्यक्ति से हो तो दोस्ती की जटाएँ बढ़कर प्यार के वटवृक्ष का रूप ले लेती हैं|

समान्यतः हम प्रेम की तुलना प्रेमिका की बाह्य अर्थात शारीरिक सुंदरता एवं आकर्षण से करते हैं| परंतु यह भावना किसी पक्षता के कारण नहीं है, बल्कि हमारी विचारों की अपरिपक्वता व मानसिक भ्रमता के कारण है| जहां तक मेरा विचार है सार्थक प्यार तन से नहीं बल्कि मन से होता है तथा इसमे वासना का स्थान कतई नहीं होता| प्रेमी व प्रेमिका को उनके मध्य प्यार का एहसास होने के कारण दोनों मे दूरियाँ मिटती हैं| और वे एक दूसरे के इतना करीब आजते हैं, कि मेरे विचार से दुनिया मे कोई भी रिस्ता इतना नजदीकी व मिलनसार नहीं होता, जितना की एक प्रेमी व प्रेमिका का होता है|

वह व्यक्ति जो अपनी प्रेमिका की बाह्य सुंदरता से मदमस्त रहता है एवं शारीरिक सुंदरता वी वशीभूत होकर अपने प्रेम की अग्नि को प्रज्ज्वलित करता है , अर्थात उसकी सुंदरता को ही अपने प्रेम का आधार मानता है| ऐसे प्रेमी की प्रेम की अग्नि उस समय क्षीण हो जाती है, जब उसकी प्रेमिका बुढ़ापे की कैद मे जकड़ जाती है या फिर उस प्रेमिका से भी अधिक सुंदर कोई दूसरी उसके जीवन के दरवाजे पर दस्तक दे जाती है|

अतः स्थायी एवं सार्थक प्रेम के लिए वास्तविक या आंतरिक सौंदर्य आवस्यक है| निष्कपट और सुदृढ़ मन, सुंदर विचार शांत  इच्छाए  व त्याग एवं समर्पण की भावना  अखंड एवं अबाध  प्रेम को जन्म देते हैं और इन सब से मिलकर बना प्रेम स्थायी और अंततः सफल होता  है|

सुंदर आकृति, शारीरिक सौंदर्य सच्चे प्यार के अंग हो सकते हैं पर अनिवार्य नहीं| वास्तविक प्रेम के लिए नैतिक गुण आवश्यक हैं| नैतिक व सामाजिक गुणो के अभाव मे किसी के प्रेम को प्रेम नहीं कहा जा सकता है|

आजकल “लव ऐट फ़र्स्ट साइट” शब्द बहुत प्रसिद्ध है| महानुभावों का कहना है की प्यार किसी से पहली नज़र मे ही हो जाता है| मेरी नज़र मे ऐसा प्यार घृणातुल्य है और इसे सच्चे प्यार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, क्योकि यह पूर्णतः शारीरिक सुंदरता पर आधारित है जो की अल्पकालिक है| एक दूसरे भावनाओं  को पूर्णतः समझे बिना हम सच्चा प्यार कैसे कर सकते हैं?

यूं तो दुनिया मे अनेक लोगों  को प्यार मिल जाता है, अनेकों के बगीचों मे प्यार के फूल खिल जाते हैं| पर दुनिया मे सबसे भाग्यशाली वही होता है, जिसे सच्चा प्यार मिलता है|

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