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आजकल सर्दी के मौसम मे चुनावी माहौल काफी गरम है!सभी राजनीतिक दल एक दूसरे को नीचा दिखाने व खुद को पाक साफ बताने मे कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं!बात अगर यही तक की है तो ठीक है, पर ये राजनीतिक दल तो काफी आगे जा चुके हैं! ये जिस तरह जाति व धर्म के आधार पर वोट मांगने का कार्य कर रहे हैं, उससे कहीं न कहीं देश की अखंडता पर एक गंभीर चोट पड़ रही है !
सभी राजनीतिक दल एक विशेष जाति समूह या धर्म विशेष को रिझाने मे लगे हैं, समग्र विकास, भृष्टाचार आदि का कोई मूलभूत मुद्दा ही नहीं रह गया है!अब सवाल इस बात का उठता है की क्या गरीबी , मंहगाई, भृष्टाचार आदि समस्याएँ भी इंसान के ऊपर उसकी जाति या धर्म को देख कर आने लगी हैं? क्या विकास का मुद्दा सिर्फ जाति या धर्म विशेष तक ही सीमित रह गया है?
अब तो हद ही हो गयी है, ये राजनीतिक दल कैसे कैसे तरीके भी ढूँढने लगे हैं विशेष जाति समूह को रिझाने के लिए! अब केंद्र के सत्ताधारी दल को ही ले लो!इस दल ने एक जाति विशेष को आकर्षित करने के लिए एक नमूना खोज निकाला , जो जगह जगह जाकर अपनी जाति बता रहा है और कह रहा है मुझे उस जाति का होने पर गर्व है! तो महाशय जी आप अपने माता पिता या अपने पूर्वजों पर भी गर्व कर लेते जिनकी वजह से आप इस दुनिया मे आए और ये मुकाम हासिल किया! आप जैसे पढे लिखे व समझदार पुरुष का इस तरह घूम घूम कर अपनी जाति बताना व उस आधार पर पार्टी के लिए वोट मांगना आपको शोभा नहीं देता!!
खैर ये तो सिर्फ एक उदाहरण था, राजनीति की गलियों मे आपको और भी ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे!!
आज के समय मे जहां युवा वर्ग जाति धर्म से हटकर विकास के मुद्दे पर बात करना चाहता है वही आज का नेता मंच पर भाषण के लिए जाता है तो वह प्रदेश या देश के विकास की बात बाद मे करता है! पहले बात इस बात की करता है की उसके शासनकाल मे पिछड़ों का कितना विकास हुआ,दलितों का कितना विकास हुआ अल्पसंख्यकों का कितना विकास हुआ! वो एक लाइन मे कहना ही नहीं जनता है की मेरे शासनकाल मे सम्पूर्ण जनता का कितना विकास हुआ!!
ये हमारे देश की अखंडता पर चोट नहीं तो फिर और क्या है? अगर समय रहते इसका उपाय नहीं निकाला गया तो परिणाम भयावह हो सकते हैं! ऐसे मे समझदारी जनता को ही दिखानी होगी, उसे जाति धर्म से ऊपर उठकर अपना ऐसा नेता चुनना होगा जो वास्तविक विकास करा सके!!
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